यह कहानी दिल्ली में स्थित गुलमोहर विला में रहने वाले एक रईस परिवार की है ।डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई इस फ़िल्म के निर्देशक राहुल चिटेला हैं। इस फ़िल्म के द्वारा शर्मिला टैगोर ने एक अरसे बाद फ़िल्मी पर्दे पर वापसी की। वह परिवार की मुखिया , कुसुम बत्रा की किरदार में नज़र आ रही है । एक ही छत के नीचे तीन पीढ़ियाँ रहा करती थी जो अब अपने-अपने अलग घर की ओर जा रही हैं। फ़िल्म की शुरुआत में जितनी चमक धमक दिखाई पड़ती है बाद में पता लगता है की इस संयुक्त परिवार में कितनी उलझने है, कैसे परिवार का हर एक सदस्य अपने अंदर कितनी कहानियाँ समेटा हुआ है ।
हर परिवार की तरह इस घर के सदस्यों को भी लगता है की वह एक संयुक्त परिवार के तौर पे रहने में असक्षम है ।फ़िल्म में दिखाया गया है की कैसे सब सदस्यों को रिश्ते निभाना एक औपचारिकता लगती है । हमारी पीढ़ी की ये कितनी अजीब बात है, एक तरफ़ हम किसी अपने की तैलाश करते है और दूसरी ही ओर अपनों से दूर भागते है। कुसुम बत्रा ‘गुलमोहर’ बेच कर अपनी बाक़ी की ज़िन्दगी अकेले पुडुचेरी में बिताने का फ़ैसला लेती हैं, इसी के चलते वह चाहती है कि पुश्तैनी घर छोड़ने से पहले सब साथ में एक आख़िरी बार होली मनाए।
इस फ़िल्म में मनोज बाजपेयी ने परिवार के वारिस अरुण बत्रा के किरदार में है । हर बार की तरह इस बार भी मनोज बाजपेयी ने यह किरदार बखूबी से निभाया है। कुसुम के फ़ैसले से बिलकुल खुश नहीं होते है परंतु वह श्रवण कुमार की तरह अपनी माँ की आज्ञा के आगे झुक जाते है । अरुण बत्रा का किरदार मनोज बाजपेयी के आम किरदारों से बिलकुल अलग है। अपनी माँ के साथ उनका बर्ताव और अपनी बीवी के साथ एक लाजवाब केमिस्ट्री वही अपने बच्चो के साथ एक उखड़ा रिश्ता , बाप-बेटे के बीच तनाव इन सब को लेकर चलते अरुण ख़ुद को भूल जाता है । सबको खुश करने की कोशिश में वह ख़ुद की ख़ुशी खो देते हैं।
फ़िल्म की शुरुआत थोड़ी धीरे-धीरे होती है इस वजह से कई दर्शक अपनी रुचि अंतराल तक खो देते हैं। फिल्म ‘गुलमोहर’ दुनिया को सुनहरे रंगों के साथ दिखने वाले एक दिखावटी परिवार की एक कहानी है। यह फ़िल्म हमे अपने परिवार से रूबरू कराती है। हमे सिखाती है की सारे गिले-शिकवे भुला कर अपने परिवार का साथ देना चाहिए, परिवार है तो हम हैं, परिवार है तो सब है।
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